मैं और तुम काश हम हो जाते
ये जो दूरियां, ये फासले है हमारे बीच
काश थोड़े कम हो पाते....
ना गलती तुम्हारी थी ना कहीं मैं ही गलत था
कुछ वक्त का सितम कह लो या किस्मत का लिखा
होना था और हो गए हम दोनो जुदा....
काश बीते हुए वक्त को हम वापस मोड़ पाते
थोड़ा वक्त तो एक दुजे के पहलु मे बिताते
ना आती हमारे बीच ये खामोशियां
कुछ कह जाते अपनी कुछ तेरी सुन जाते....
नही कटता मुझसे अब ये तन्हा सफर
थक चुका हू अकेले अब तुझमे खोना चाहता हूं
बेखौफ तेरी बाहों मे अब सोना चाहता हूं....
आजा तोड़ के शर्मो हया की हर दिवार
लगा ले सिने से और कह दे की है इकरार
बिखर के तेरी शानो पे रोना चाहता हूं....
आँखों मे अब भी जाने क्यूं है ये सपना
चारो तरफ बस खामोशी की चादर है
कौन कहे मुझे अपना......
पा कर सब कुछ, सब कुछ खो दिया है
तुझे याद कर आज फिर ये दिल रो दिया है
टुटे कोई तारा और शमा ये हो जाए
कुछ ना हो पास मेरे बस तू लौट आए....
©आशीष सिंह
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