नारी ममता की मूरत Poem by Ashish Singh

नारी ममता की मूरत

नारी ममता की मूरत

मां बहन पत्नी बेटी हर किरदार निभा जाती है
नहीं होती तो बस खुद की, नारी खुद को कहा पाती है
क्या करना है उसको हर दम, कोई दूजा ही बताता है
जो संभाल लेती है घर सारा
उसे ही ये दुनिया नासमझ बताता है

पिता भाई पति बेटा
क्यों सारा खुद को समझता है
नारी ममता की नदी है वो
जिस्मे जग सारा बहता है
बिन पति के एक नारी संतान को पाल जाती है
बिन नारी एक पुरुष खुद को भी कहाँ संभाल पाता है

खड़ी हो जाए जहां हर पुरुष पे वो भारी है
कौन सी जगह है बोलो जहां नारी हारी है
मत समझो कमजोर उसको तुम
बात जब इज्जत पर आए वो तलवार दो धारी है

एक पौधा भी दूसरी जगह कहा आसानी से लग पाता है
नारी ही वो पेड़ है जो हर जगह जम जाता है
बहुत ज्यादा की चाह नहीं उसको
बहुत कम उसकी जरूरत है
थोड़ा प्यार थोड़ी इज्जत
नारी तो बस ममता की मूरत है

©Mysteriouswriter

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