.बे इन्तेहा इश्क़
जिसके हुस्न का नशा न उतरे चढ़ कर
जिसे चूम लू मैं बस बाहों में भर कर
जिसकी सांसो की गर्मी सुबह-ओ-शाम मिले
जिसकी पलकों के छाव में ही मुझे अब आराम मिले
खो कर मैं खुद को जिसे पा जाऊ
बस ऐसा ही बे इन्तेहा इश्क़ मैं कर जाऊ
रात का शमा भी क्या खूब है
साथ मेरे आज मेरा महबूब है
जिस्म की तलब नहीं मुझे
मुझे तो उसकी रूह में उतरना है
रख अपने लब लबों पे उसके
उसकी सांसो से ये कहना है
जिस्मानी नही मुझे रूहानी इश्क करना है
जग से तो क्या उसकी खातिर
खुदा से भी अब लड़ना है
इश्क में खुद को रांझा और हीर उसे करना है
हां अब बे इन्तेहा इश्क़ मुझे करना है...! ! !
© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️
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All the best. Koi to hoga jo Is jazbaat ki kadr karega. Bahut khoob.