जिए ज़िंदगी की तलब Poem by Anant Yadav anyanant

जिए ज़िंदगी की तलब

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सुना है लोग कतरे से खुश हैं,
समुंदर की चाह नही,
जीने की तलब है,
जीने की गुहार नही करना,
पाना सबकुछ है कमबख्त,
फिर मेहनत क्यों नहीं करना
कट तो अक्सर वो सर जाते हैं,
जिनके कटने के इंतजार न करना
कहता मेरा सिर न मिलेगा.....
अंखियन मे डर न मिलेगा
क्या ही पता बिठाने को है जहां सारा
लेकिन रहने को दुबारा घर न मिलेगा,
आई मेरी राह की रौनक,
जाना है तो चली जा,
कर्मजफा के हाथों में तो सागर है,
मंथन कर निकला सार संसार है ।
ऐसे ही नही गम की आगों,
में तपा मन है, इच्छा थी कर गुजर जाने की,
करे तो किसके लिए,
गए राह आसमान घर फिर न मिलेगा,
ज़िंदगी जीने कि तलब है कनाकात ही नही करना।

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