पहल ग़म! Poem by Anant Yadav anyanant

पहल ग़म!

पहलगाम की वादियाँ कल रो पड़ी थीं,
चुप थे चिनार और नदियाँ भी सिसक रही थीं।
जहाँ सैलानी हँसते थे, तस्वीरें बनाते,
वहीं अब बारूद की बू फैली थी रात भर।

फिज़ाओं में शोर नहीं था, बस सन्नाटा था,
हर दिल में डर, हर आँख में इक तमाशा था।
कल की वो गोली, मासूमियत को चीर गई,
जिसने बचपन से उसका ख्वाब भी छीन लिया।

ये किस जंग का हिस्सा बना है हमारा वतन?
जहाँ धर्म नाम लेना भी बन गया एक जुर्म।
पहलगाम, जो कभी था मुहब्बत का पैगाम,
आज है चीखों की गूंज, और वीरानी का नाम ।

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success