दो घड़ी जिंदगी जी लेने दे,
जी लेने दे...२
थक गया दौड़ते दौड़ते मैं,
थम जा मेरी जिंदगी दो घड़ी के लिए,
अभी शाम ढलने में देरी बहुत है,
ठहर जा तू थोड़ा, तू रुक जा जरा सा
सूरज आंगन में छाए हुए है,
मेरी जिंदगी तू मचाए हुए है।
मुस्कराहट थकी हैं मुखौटा ओढ़े, ,
चेहरे के ऊपर न चांद कोई है, ,
वैसे तो फर्क अब पड़ता नही है
दुनिया से डर अब लगता नही है
हर चौराहे, इमारत पे मेरा मका हो
ऐसा तो कोई जरूरी नही है ।
अगर मैं बेपर्दा हो भी गया तो,
हुआ ये कोई गुनाह तो नही है
वैसे तो फर्क अब पड़ता नही है,
दुनिया से डर अब लगता नही है,
क्या क्या छुपाएं, और किससे छुपाएं
दर्द बताए तो किससे बताए,
अब तो सरेआम गई जिंदगी है,
रुक जा, ढहर जा मैं बोलूं न तुमसे
जो लम्हे बचे मैं गुजारूं न तुम बिन,
शर्त में होती तो जीते भी होते,
क्या फर्क पड़ता है, हरा भी ले एक दूजे को,
सफर बाकी है, साथ चल लेने दे
मेरी जिंदगी तुझे क्या फर्क पड़ता
अभी शाम ढलने में देरी बहुत है,
रुक जा जरा तू ठहर जा जरा सा
सूरज आंगन में छाए हुए है
मेरी जिंदगी तू मचाए हुए है।
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