रंगे थे तुम्हारे पैर कभी जैसे शाम को रंगते हैं बादल.. Poem by Anand Prabhat Mishra

रंगे थे तुम्हारे पैर कभी जैसे शाम को रंगते हैं बादल..

रंगे थे तुम्हारे पैर कभी जैसे शाम को रंगते हैं बादल,
चाहा तुम्हें भी दिन रात जैसे चांद के लिए चकोर हो पागल..
वो पल जिनमे तुम साथ थे, और हर शाम सुहानी थी,
बातें खत्म न हो पर वक्त बीत जाती, बड़ी लम्बी कहानी थी..
कितने शाम गुजारे साथ और देखे आसमान और चांद को,
तुम्हें अपनी बाहों में भर के महसूस किया प्रेम के उन्माद को..
छुप छुप कर तुम्हें देखना जैसे आंखों से ही बातें होती थी,
हर शाम तुम्हारे साथ जल्दी कटती, और लम्बी रातें होती थी..
कभी उलझने आईं कभी सिर्फ जिया तुम्हारी यादों में,
कभी बहाए आंसू कभी हंसा तुम्हारी बचकानी बातों में..
कभी टूटा, कभी साथ छूटा तो कभी तुम रही मेरे हौसलों में,
पर फिर तुम लौट आए जैसे पंछी लौटती हर शाम घोंसलों में..
तुम्हारा लौट आना जैसे मन की दिवाली हो,
आखों में रौनकता आ जाती थी जैसे सुबह की लाली हो..
कभी लूडो खेलें कभी जीते तुमसे कभी हारे,
सच कहूं तुमसे जीतना चाहा नहीं कभी और आज भी हैं हम हारे..
पाने की जिद्द नहीं बस चाहत थी तुम्हारे साथ उम्र गुजारने की,
क्या हुआ जो पूरी न हुई चाहत, अब बारी है तुम्हारी खुशी में मुस्कुराने की..


: -आनंद प्रभात मिश्रा

Saturday, September 21, 2024
Topic(s) of this poem: poetry,hindi
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