जानता हूं के तुम ना आओगे
पर क्यूं तुम्हारे आने जैसा प्रतीत होता है?
कोई बेवक्त दरवाजा खटखटाता है
और लगता है कहीं तुम तो नहीं?
कोई रॉन्ग नंबर आता है
और लगता कॉल तुम्हारा तो नहीं?
जानता हूं तुम ना आओगे
पर एक उम्मीद बनी रहती है
झूठी उम्मीदें दिल को भाने लगी हैं शायद
बेवजह इंतजार करना आदत बन गया है
तुम्हारे जाने जैसा घटना फिर न दोहराए
भगवान करे तू मुझे फिर पसंद न आए..
रोए दिल, भले लाख ज़िद्द करे तेरे लिए
टूटे तो टूटे, मिटे तो मिटे पर अब कोई आस न जगाए
क्यूं तमन्नाओं में तुम्हारी जिक्र करूं?
क्यूं चाहतों को संवरने की बात लिखूं?
भावनाएं मिट चुकीं गर हृदय में तो पढ़ न पाओगे
जानता हूं के तुम ना आओगे, ,
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"…unfounded wait for you….. in spite of knowing well that you would not come.." it is expectations that drive man forth..