एक रिश्ता बेनाम रहने दो
जिसमे न कोई शर्ते न कोई मजबूरियां हों
न तुम बहुत पास न दरमियान बहुत दूरियां हो
सब कुछ स्वतंत्र और निःस्वर्थ हो
जब मिलो मुस्कुराओ
जब विदा लो मुस्कुराओ
न कुछ उम्मीदें रुलाए तुम्हें
न कोई आदतें हंसाए हमें
मिलो कभी तो ठहर जाओ
वक्त की कोई बंदिश न रहने दो
एक रिश्ता बेनाम रहने दो..
न मैं पुकारूं तुम्हें
न ही तुम से मिलने की आस करूं
मगर जब मिलूं तो कुछ बात करूं
कुछ पल ठहर बयां जज़्बात करूं
हां मगर तुम न संभालो मेरे ग़म को
मैं बस आदतन चर्चाएं सरेआम करूं
हक जताने जो लगूं तुम पर तो कहना
चलो बस.. अब रहने दो, ,
एक रिश्ता बेनाम रहने दो..
'आनन्द प्रभात मिश्रा'
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem