एक रिश्ता बेनाम रहने दो Poem by Anand Prabhat Mishra

एक रिश्ता बेनाम रहने दो

एक रिश्ता बेनाम रहने दो
जिसमे न कोई शर्ते न कोई मजबूरियां हों
न तुम बहुत पास न दरमियान बहुत दूरियां हो
सब कुछ स्वतंत्र और निःस्वर्थ हो
जब मिलो मुस्कुराओ
जब विदा लो मुस्कुराओ
न कुछ उम्मीदें रुलाए तुम्हें
न कोई आदतें हंसाए हमें
मिलो कभी तो ठहर जाओ
वक्त की कोई बंदिश न रहने दो
एक रिश्ता बेनाम रहने दो..

न मैं पुकारूं तुम्हें
न ही तुम से मिलने की आस करूं
मगर जब मिलूं तो कुछ बात करूं
कुछ पल ठहर बयां जज़्बात करूं
हां मगर तुम न संभालो मेरे ग़म को
मैं बस आदतन चर्चाएं सरेआम करूं
हक जताने जो लगूं तुम पर तो कहना
चलो बस.. अब रहने दो, ,
एक रिश्ता बेनाम रहने दो..




'आनन्द प्रभात मिश्रा'

एक रिश्ता बेनाम रहने दो
Sunday, September 22, 2024
Topic(s) of this poem: hindi,poetry,urdu,blind love
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