कुछ फुर्सत के लम्हों में मैंने लिखा है
कि मैने लिखना तुम्हें देख कर सीखा है..
यूं तो कई ख्वाब देखें हैं मगर,
एक ख्वाब को हकीकत सा लिखा है..
अपने जीवन के सभी रिक्तियों में तुम्हारा नाम लिखा है..
हर रंग चटक पक्की हो भी सकती है मगर,
बिना तुम्हारे प्रेम के हर रंग को हमने फीका लिखा है..
फूल से बातें करते भंवरे को छुप कर सुना
प्रेम के कई गीत, किस्से-कहानियां सुनें मगर,
जो तस्वीर उभरती है एकांत मन के खिड़कियों पर
मैने एहसासों के हर पन्नों पर तुम्हारा वो ख्याल लिखा है..
जीवन के सारी ख्वाहिशों के मीट जाने के बाद भी,
हृदय के कोने में तुम्हारी एक उम्मीद का रह जाना जैसे
लाखों बूंदें बारिशों के बह जाने के बाद भी,
एक आखिरी बूंद का पत्तियों पर ठहर जाना लिखा है..
आसमां के सारे सितारे एक जैसे लगते हैं मगर,
जो अलौकिक आभा सी हो मन के शिखर पर
सबसे अलग तुम्हारा वो पहचान लिखा है..
कुछ फुर्सत के लम्हों में मैंने लिखा है
कि मैने लिखना तुम्हें देख कर सीखा है...
: - आनंद प्रभात मिश्र
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