तुम से हुई एक छोटी सी बात
दिन भर की संगीत बन जाती है..
तुम्हारी मुस्कान की एक झलक
न जाने कितनी कविताएं बन जाती है..
तुम्हें कैसे बताऊं तुम क्या हो मेरे लिए, ,
मेरी हंसी मेरा रूदन,
मेरी गीत संगीत,
मेरी कविता मेरी पंक्ति,
मेरे शब्द मेरे भाव,
मेरी इच्छाएं मेरी कामनाएं,
मेरा अल्हड़पन मेरा चंचल मन,
सब तुम से ही है,
तुम कभी समझो तो ये समझना, ,
मेरे स्वभाव की तरलता में तुम चांद सी चमकती हो,
जैसे तुम्हारी मुस्कान की प्रतिबिंब मेरे चेहरे से झलकती हो..
सहमति असहमति की बात ही नहीं, मैं तुम्हारे अनुरूप हूं,
पृथक नहीं हूं ज़रा भी तुमसे, मैं तुम्हारा ही स्वरूप हूं...
: -आनन्द प्रभात मिश्रा
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