|| हर शहर में एक गांव दफ़न है || Poem by Anand Prabhat Mishra

|| हर शहर में एक गांव दफ़न है ||

पेड़ काट सड़क पक्की बना दी हमने
सरपट भागती गाड़ियों को जीवन की रफ़्तार मान ली हमने
साँसे स्वच्छ लेने के लिए
पेड़ लगाने के सुझाव भी दे डालें
बड़े वृक्षों को काट गमले सजाए हमने
गांव में शहर की नींव भी डालें हमने
अगले बरस तक गांव शहर बन जाएगा
बूढ़ों को बृद्धाश्रम मिल जाएगा
फिर दरवाजे पर भय की कुण्डी लग जाएगी
गइया घांस नहीं कचरे से बसी रोटी चुन खाएगी
कुत्ते टहलाते लोग नजर आएंगे
बच्चों को बालकनी से दुनिया दिखाएंगे
भोर में चिड़ियों की चहचाहट नहीं
गाड़ियो कीे शोर गूंजेंगी
लोग उसी शोर में जीवन की संगीत ढूंढेंगे
जो छुट गए अतीत में वो अब नहीं आने वाला
बरखा होगी फिर भी मिट्टी की ख़ुश्बू नहीं आने वाला
शहर के चकाचोंध में न साँझ न भोर होगा
न हीं चांदनी रातों में पपीहा का शोर होगा
न चन्दा मामा की कहानियां होंगी
न खुले आसमान तले सितारों की बातें होंगी
न सूरज खिड़कियों से झाँक कर मुस्कुराएगा
न हीं चाँद अंगने वाले पेड़ से छुप कर शर्माएगा
और न हीं शहर में गाँव लौट कर आएगा
ये पक्की सड़कें नहीं खेतों मिट्टियों के कफ़न हैं
हर शहर में एक गांव दफ़न है
हर शहर में एक गांव दफ़न है ।।


|| आनन्द प्रभात मिश्र ||

Saturday, September 21, 2024
Topic(s) of this poem: hindi,poetry,urdu
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