|| तुम्हारा प्रेम || Poem by Anand Prabhat Mishra

|| तुम्हारा प्रेम ||

​​​सचित्र कल्पनाओं से परिपूर्ण एकांत मन में
सुंदर छवि का नयनों में उतर आना जैसे
सायंकाल में नदी में झांक कर खुद को संवारता चंद्रमा
उदित होने को तैयार होता हो जैसे..
तुम्हारा प्रेम, ,





अंधियारी में भी जुगनू रौशनी का सहारा हो
और भटके मुसाफिर को रास्ता दिखाता हो जैसे
पूर्णिमा रात में चंद्रमा की चांदनी से
रुख़्सार पर झलकती हुई तील हो जैसे..
तुम्हारा प्रेम, ,





तानपुरे को कांधे से लगा कर बंद आंखों से
संगीत के मधुर स्वरों को महसूस करना हो जैसे
तुम सर को मेरे कांधे पर रख नदी तट पर बैठी
अपने मन की उलझनों को सुलझा रही हो जैसे..
तुम्हारा प्रेम, ,





अलग है सब से
जो अलौकिक, सुंदर, निर्मल, नीरव हो जैसे
सिर्फ मेरे लिए छनिक हीं नहीं अपितु मेरे जीवन पर्यन्त
और उससे कहीं अधिक जी लेने भर के लिए हो जैसे
कुछ पल के लिए सही पर इसमें समाहित संपूर्ण जीवन है
थोड़ा किंतु परिपूर्ण हो जैसे
तुम्हारा प्रेम





बातें करते-करते हंस कर पलकें झुका लेना तुम्हारा
लटों को कान के पीछे कर शर्माना तुम्हारा
मेरा प्रेम तुम्हारी उन्हीं जुल्फों की घुंघराहट में उलझी हैं
और तुम उंगलियों में लपेट उन्हें सहलाती हो जैसे
तुम्हारा प्रेम





उठाकर नजरें थोड़ी सी होठों से मुस्कान छलकाती हो
एक अनकही सी जज़्बातों को चेहरे से बयां करती हो जैसे
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें कान बाली को आग़ोश में लिए रहती हैं
कान बाली और ज़ुल्फ़ों में अक्सर कुछ गुफ़्तगू होती हो जैसे
तुम्हारा प्रेम

Saturday, September 21, 2024
Topic(s) of this poem: hindi
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