तो बस एक दिन कैसे तुम्हारे नाम करूं
कई रात मैने तुम्हें जगाया है
कई वर्ष अपनी नादानियों से तुम्हें सताया है
जब जब बिजली चली जाती थी
तुमने गोद में उठा कर अंधेरों से बचाया है
स्वयं गर्मी में तपती थी, रात भर जागती थी
सारी सारी रात तुमने आंचल हांक सुलाया है
न जाने तुमने मेरे लिए कितने सुख चैन गंवाया है
तुम्हारे इस प्रेम और त्याग का कैसे अपमान करूं
मेरे जीवन का जब हर एक क्षण है तुम्हारा
फिर तुम्हीं बोलो मां
तो बस एक दिन कैसे तुम्हारे नाम करूं?
अपनी ममत्व और प्रेम से सींचा तुमने मेरा बचपन
मुझे ठेस लगे तो दर्द महसूस करता है तेरा मन
भुला कर तकलीफें अपनी, मेरे चेहरे पर मुस्कान लिखा तुमने
सादे पन्ने सा था मैं उस पर प्रेम लिखा तुमने
तुमने जिस तरह जोड़ रखा है खुद से
मुझे कभी दूर न करना मेरे वजूद से
मैं निर्भीक हूं परन्तु इतना भी नहीं
बिना तुम्हारे मेरे हिम्मत, हौसलों का कोई मोल नहीं
तुम्हारे आंचल के छांव में हीं जीवन अर्थ है
बाकि दुनियां का हर एक मूल्यवान वस्तु व्यर्थ है
तुम्हारे जीवन के एक एक क्षण से बना
मेरे रक्त का एक एक कण है
उतने शब्द हीं नहीं मां, जिनमे ममत्व का पूर्ण बखान करूं
तो बस एक दिन कैसे तुम्हारे नाम करूं? ?
: - आनन्द प्रभात मिश्रा
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