तीन कहानियाँ - नेकी कर, दरिया मे डाल Poem by Alok Agarwal

तीन कहानियाँ - नेकी कर, दरिया मे डाल

महाभारत मे एक प्रसंग आता है की क़ृष्ण, कर्ण के सम्मुख खड़े हैं। कर्ण उसी समय स्नान करके आए हैं, और उनके दाहिने हाथ मे कोई सामान है। इसी बीच भगवान क़ृष्ण उनसे किसी वस्तु को दान मे माँगते हैं। कर्ण अपने बाई हाथ से वो वस्तु उनको देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ते हैं। भगवान क़ृष्ण हल्की से क्रूध अवस्था मे उनसे कहते हैं, ‘की क्या आपको इतना भी नहीं पता की बायें हाथ से दान नहीं देते। आपके दूसरे हाथ मे जो वस्तु है, उसे रखकर आईए और फिर दान दीजेए'। इसके जवाब मे कर्ण कहते हैं की, ‘हे प्रभु! जीवन क्षण-भंगुर है, और इस बात का क्या भरोसा कि जब तक मैं अपने हाथ कि वस्तु वहाँ रख-कर आऊँ तब तक तक ये जीवन रहे या न रहे'। अपने बात को और बल देने के लिए कर्ण कहते हैं, ‘कोई अच्छा कार्य करने मे कभी भी विलम्ब नहीं करना चाहिए'। कर्ण कि बात सुनकर क़ृष्ण खुश हो जाते हैं और वहाँ से चले जाते हैं।

पौराणिक कथाओं को सुनकर हमे अच्छा तो बहुत लगता है, लेकिन क्या हम उनपर अमल कर पाते हैं।

इस कहानी को किसी जगह पढ़ने/ या यूट्यूब मे विडियो देखने के बाद; मेरे जीवन मे कुछ घटनाएँ हुई, उसको मैंने इस दृष्टि से देखा, और उनको अब यहाँ प्रस्तुत करता हूँ।

कुंभ के मेले मे शाम को भंडारा बाँट रहा था और उस भंडारे मे कई लोग, हर तबके के मौजूद थे। उनमे से एक आदमी जो कुछ मैले कपड़े पहना था उसने भंडारे मे जो संत ‘पूरी' बाँट थे, उनसे आग्रह किया कि मुझे मेरे थाली मे दो कि जगह तीन पूरी दे दो। मेरा अनुमान है, कि शायद उसको भूख ज्यादा होगी या उसके मन मे लालच होगा। खैर, जो महानुभाव उनको ‘पूरी' दे रहे थे, उन्होने उस मनुष्य कि विनती को ये कहकर नकार दिया कि ‘तीन पूरी देना अच्छा नहीं माना जाता'। उनका कहने का अभिप्राय यह था कि सब को पूरी मिल जायेगी, और जब अगली बार वो पूरी देने आयेंगे, ताभ उसको भी दे देंगे। लेकिन मेरे मन ने उनके इस कृत को कर्ण-और-कृष्ण कि कथा से जोड़ दिया। मेरे द्वारा इस कहानी मे नायक का मैले कपड़े पहना होना उसकी गरीबी और निचले तबके के होने को सूचक है, जिसको मैं बहुत उचित नहीं मानता; परंतु जिस परिवेश मे हम सब बड़े हुए हैं - उस परिवेश के ये विकार है। इसके अलावा, जो संत हमारे नायक को पूरी दे रहे थे, उनको भी मैंने संत कि उपाधि इसलिये दी - क्यूंकी उन्होने भगवा रंग कि वेश-भूषा पहन राखी थी; और किसी के वस्त्रों से मनुष्य को कोई उपाधि देना शायद गलत बात है। इन्ही गलतियों के निवारण के लिए ही ये माना जाता है, संगम मे डुबकी लगाने से पाप कट जाते हैं।

दूसरों को आईने से देखने मे बहुत आनंद की प्राप्ति होती है। इसलिये मैंने सोचा की मेरे को क़ृष्ण-कर्ण के प्रसंग का पता है, इसलिये मैं इसको अपने जीवन मे उतारुंगा।

कुछ दिन बाद - कुंभ मे एक लेसर शो चल रहा था, जिसे देखने हम सब देखने गए और उस शो मे बहुत आनंद आ रहा था। शो के बीच मे मेरे को फोन आया जिसे मैंने पहली बार मे नही उठाया। उसी व्यक्ति ने दोबारा फोन किया और मजबूरी मे मैंने इस बार ये फोन उठा लिया। सामने वाले व्यक्ति ने कहा की उन्होने मेरे कुंभ की फोटो whatsapp पे देखी है, और उनके कुछ मित्र हैं जो प्रयागराज आना चाहते हैं कुंभ मे स्नान करने के लिए। मैंने उनको बताया की अभी मैं मेला छेत्र मे हूँ और लेजर शो के दौरान संगीत का शोर बहुत तेज है - और मैं उनसे एक घंटे बाद दोबारा बात करूँगा। लेजर शो एक घंटा चला और उसको देखने के लिए बहुत भीड़ थी। मेरे मन मे था, की जैसे ही लेजर शो खतम होगा, तुरन्त सबको गाड़ी मे बैठालकर वहाँ से चले जाएँगे। अगर शो के बाद थोड़ा भी रुके, तो गाड़ी निकालने के लिए बहुत भीड़ हो जायेगी जिससे अनावश्यक कष्ट का सामना करना पड़ेगा। इसी उधेड़-बून मे मैं अपने मित्र को वापस कॉल करना भूल गया और जब देर रात हो गयी, तो मैंने सोचा की अब क्या कॉल करूँगा - सुबह कॉल करता हूँ। अगले दिन प्रत: 9 बजे के आस-पास मैंने उनको कॉल किया और उनसे पूछा, ‘की आपका कल फोन आया था। आप जो कहना चाहते हैं, वो अब बतायें'। उन्होने कहा की, ‘उनके कुछ मित्रों को प्रयाग आना था और online कमरे का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा था; और क्यूंकी मैं प्रयागराज का रहने वाला हूँ, और इस समय वहाँ मौजूद भी हूँ - ये सोचकर मदद के लिए उन्होने कॉल किया था। लेकिन अब इसकी ज़रूरत नहीं है, क्यूंकी अब उनको कमरे का इंतज़ाम हो गया है'। मेरे को धन्यवाद बोलकर उन्होने फोन काट दिया।

मेरी धर्म-पत्नी मेरी फोन कॉल सुन रही थी और उन्होने कहा की जब से हमने फोटो डाली है - तब से कई लोग पूछ-ताछ कर रहे हैं, कुंभ को लेकर। उनके पास भी लेजर शो के दौरान फोन आया था और उन्होने भी अपनी मित्र को बोला था की वो एक घंटे के बाद, उनसे दोबारा बात करेंगी। लेकिन उन्होने फिर लेजर शो समाप्त होते ही उनसे बात कर ली थी।

मेरे को इस बात का पक्का यकीन है की क़ृष्ण-कर्ण के प्रसंग से वो पूर्णत: अनभिज्ञ हैं। मेरे को उनको ज्ञान देने की आवश्यकता भी महसूस नही हो रही है। मैं ये भी नहीं चाहता की अगर भविष्य मे उनको क़ृष्ण-कर्ण के प्रसंग का पता चले - तो वो मेरे कृत को इस कथा से जोड़कर देखें।

अपने आप को इस आईने से देखने के बाद और पहचाने के बाद अभी भी ऐसा कभी-कभी होता है की मैं लोगों की मदद नही कर पाता। शायद इसी लिए ये मान्यता है की संगम मे कुंभ के दौरान डुबकी लगाने से पाप एमआईटी जाते हैं।

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