मेरी ही यादों मे Poem by Alok Agarwal

मेरी ही यादों मे

क्यूँ उड़ता फिरता रेहता हूँ तेरी यादों मे
जब हमको तो भुला दिया है मेरी ही यादों ने

ज़माने भी ख़त्म हो गए धुआँ होकर
शोलों की चिंगारी गुम हो गयी तेरी ही यादों मे

पुष्प खिले और मुरझा गए
बगीचे मुझको तलाशते रहे मेरी ही यादों मे

राहों मे कंकड़-पत्थर थिरकते रेह गए
राहगीर रास्ता खो गए अपनी ही यादों मे

किताबों के पन्ने गुमसुम बैठे रहे
पढ़ने वाले अक्षरों को तलाशते रेह गए अपनी ही यादों मे

रागों मे इश्क़ दौड़ता रेह गया
दिल धड़कना भूल गए उनकी ही यादों मे

चाँद चाँदनी बिखेरता रेह गया
सूरज निकाल ही गया अपनी ही यादों मे

किनकि ही यादों मे मैं डूब सा गया
ये भी अब याद नही मेरी ही यादों मे

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Alok Agarwal

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Allahabad
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