कुछ ढीली-ढाली सी है तबीयत मेरी
छायी है घटा ये काली कैसी
उड़ जाऊँ लेकर तेरी यादों को
जाने कैस है ये आरज़ू मेरी
नशा नही है प्यालों का
खुमारी है आंखों की तेरी
गंगा है उथल-पुथल स भरी
ओढ़नी लाई है ये हवाएँ कैसी
हल्की-हल्की से है धड़कन मेरी
देखकर क्यूँ धड़कन बढ़ी है मेरी
हिलोरे मारती है जुल्फें तेरी
बवंडर सी हैं अदायें तेरी
क्यूँ करून अब आपका इंतज़ार
हसरतें ना-पाक हैं मेरी
क्यूँ आदतों से बाज़ नहीं आते ‘आलोक'
अब तो एक ज़िंदगी भी है तेरी
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