शयाद वो कभी कहेगा नहीं, जो मैं सुनने के लिए बेताब हूं,
शायद वो कभी समझेगा नहीं, जो मैं समझाने के लिए बेकरार हूं,
शायद प्यार करना मेरे लिए जितना आसान है, उससे रूबरू हो पाना उसके लिए उतना ही मुश्किल,
पर अब इस नसमझी की आदत हो गई है, या शायद उससे 'ना' सुनने की अब मुझमें हिम्मत नहीं।
...
Read full text