Ai Kavita Meri (Hindi) ऐ कविता मेरी Poem by S.D. TIWARI

Ai Kavita Meri (Hindi) ऐ कविता मेरी

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ऐ कविता मेरी


तनिक बता ऐ कविता मेरी, तुम चली कहाँ से आई हो!
मन में मेरे हलचल मचाकर, चिंतन मेरी बढ़ायी हो।

सोई थी तुम हृदय में मेरे, निकल पन्नों पर छाई हो।
चिंतन का मंथन कराके, ज्यों छेड़ी कोई लड़ाई हो।

हृदय में मेरे घुल मिल कर, बन परमानन्द समायी हो।
कभी विकल कर कष्ट बढ़ा, मन की व्यथा जगाई हो।

कभी चुलबुलेपन से अपनी, मन को बड़ी लुभाई हो।
कभी तो चुटकुलेपन से तुम, सबको बहुत हंसाई हो।

कभी मनोरंजन बन जाती, सखी तो कभी तन्हाई हो।
कभी तुम तो नींद चुराती, होती कभी अंगड़ाई हो।

प्रेम, योग, वियोग की तुम, अद्भुत कथा सुनाई हो।
विरहन की जिह्वा पर बैठी, विरह गीत भी गायी हो।

कभी कभी करुणा में डूबी, रोकर अश्रु बहाई हो।
कभी दिलों के मधुर मिलन पर, बजती हुई शहनाई हो।

पतितों के पापों को देख, रौद्र बहुत हो जाती हो।
क्रोध में धर रूप भयानक, सबको फटकार लगाई हो।

वीरों की गाथा, गुणगान, उठा रणभूमि से लायी हो।
वीभत्सता देखी खुले चक्षु, घृणा से ना अकुलाई हो।

युद्ध, तूफान, प्रलय में तुम, डरी न तनिक घबराई हो।
सृष्टि की हर रचना देखे, दृष्टि को दूरबीन थमाई हो।

रूप सज्जा देख किसी की, करती बहुत बड़ाई हो।
स्वयं अलंकार के श्रृंगार से, सुंदरता पर इतराई हो।

खिड़कियों को मन की खोल, अन्तः प्रकाश दिखाई हो।
ज्ञान विज्ञान की बातें करके, मानस तम दूर भगायी हो।

कभी पातालों को खंगाली, अम्बर की नापी ऊंचाई हो।
सूरज, चाँद, सितारों से मिल, आभा धरती पर लायी हो।

कविता! तुम तो दर्पण बनकर, हमें प्रतिबिम्ब दिखाई हो।
कभी दशा देख समाज की, अपने ही स्वयं लजाई हो।

जीव की हर कृति, स्वभाव की, सहज अनुभूति कराई हो।
अप्रकट भावों को भी ढाल, छन्दों की सरिता बहाई हो।

देव-वाणी भी बन जाती, तुम राम कभी कन्हाई हो।
बता तनिक ऐ कविता मेरी, तुम चली कहाँ से आई हो!

(C) एस० डी० तिवारी

Wednesday, February 3, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,poetry,emotions,love
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 03 February 2016

A lovely and beautiful write.....thank you for sharing :)

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