'चम चम चमकता चंदा चला' Poem by Aakash ‘Vyom' Goel

'चम चम चमकता चंदा चला'

अर्ध रोटी सा उगा चंद्रमा
चाँदी सी दमकती महिमा
बादलों में से झांकता था
करता हठात् अठखेलियाँ

आकाश में कर मंद उजाला
धरा पर श्वेत प्रकाश डाला
क्षणों पूर्व अंधकार था सब
पुनः चमकी रत्नगर्भा बाला

श्रृंखला पर शृंखला पर श्रृंखला
बृहद तमस् छाया कोई हो बला
पर्वतों की पंक्तियाँ जैसे कोई
सुंदर, भव्य विशालकाय कला

कुछ दाग कुछ कांति में ढला
तारों को अदृश्य कर के भला
पृथ्वी की परिक्रमा को आतुर
चम चम चमकता चन्दा चला

सूर्य के प्रकाश में नित उजला
छटा में सूक्ष्म स्वर्णिम भी मिला
तिमिर निशा का कम करने को
चम चम चमकता चन्दा चला

आज रात्रि विधु कम खिला
शेष भाग रैन से जो जा हिला
अपूर्ण होकर भी सौंदर्य लिए
चम चम चमकता चन्दा चला

संप्रति बेला को सवेरा भुला
अचला के चक्करों को ढुला
सागरों को हिल्लोल लहरें दिए
चम चम चमकता चन्दा चला

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