'वायु स्वरूप' Poem by Aakash ‘Vyom' Goel

'वायु स्वरूप'

कश दर कश आये तो झोंका है
हल्के हल्के बहे तो मंद समीर है

तेज बह चली तो कहें आँधी है
गर्म शुष्क बहे तो गर्मी की लू है

मेघ घटा संग आये तो तूफ़ान है
तूफ़ान घूम जाए तो चक्रवात है

वेगहीन तो हर ओर का वात है
इतने रूपों में वायु सर्वत्र व्याप्त है

कोई रूप अच्छा या बुरा नहीं है
सब एक एक ध्येय हेतु बही है

कोई रूप ना हो तो प्रकृति अधूरी है
बिन इनके कब हुई ये प्रदर्शनी पूरी है

पवन के वेग भी कई, जब चले नित नयी है
मनुज के वेग भी कई, ग़लत या सही नहीं है

हर रूप को मौलिक तत्व वायु है प्राप्त
बन तो वात बन - शांत व सर्वत्र व्याप्त

/ Aakash ‘Vyom'

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