मेरे जीवन की शाम यादगार मधुर हो
कहे देता हूँ हर एक से सुन रहा है जो
कोई ना रोना बिलखना संताप करना
बस चिता की राख पर एक पेड़ देना बो
जब भी ये साँसों की लड़ी टूटने को हो
आ बैठ मेरे पास बातें कर लेना एक दो
कुछ नया कुछ पुराना, हाल तुम बताना
कुछ भूली बिसरी यादों में हम जाएँ खो
जब अर्थी किन्ही चार काँधो पे चढ़ी हो
ध्यान रहे मेरे दोनो हाथों को न बाँधे दो
लटकते ख़ाली हाथ लोगों को दिखलाना
'ऐसो ही आयो था और ऐसो ही गयो यो'
जब निकले, अर्थी पर पैसे न सिक्के हों
हरदम पैसा दिखलाने का रोग छोड़ दो
यदि खर्चा करना हो भूखे प्यासे पे करना
ब्राह्मण मुझ पे जो खरचा, जाएगा वो खो
जब 'राम नाम सत' नारा गूंज रहा हो
मेरे किए करम याद कर लेना एक दो
जीवन में मेरे आये, आभार स्वीकारना
क्षमा करना भाई मैंने गलती की हो तो
जब अंत्येष्टि का कार्यक्रम चल रहा हो
गंगा जल से देना मुँह हाथ पैर मेरे धो
मरा नहीं, 'यात्रा में हूँ मात्र' तुम सोचना
'पथिक आया था जो जा रहा अब लो'
जब चिता सेज धूँ धूँ कर जल रही हो
चाय पानी पिला खिला देना सभी को
'मिट्टी से आया मिट्टी बन गया' कहना
'जाने कौन रूप में आये मिलने फिर यो'
जब लौटो देखना कोई फिर नहीं रहा रो
फिर स्वयं से पूछना कुछ यदि समय हो
जीवन मेरा अब तक कैसा निभा सोचना
कहीं कोई कभी मुझसे भूल नहीं हुई तो
क्या खोया क्या पाया ये प्रश्न मन में हो
भूल हुई कोई नहीं, बस आगे ना हो सो
जीवन आगे क्यों कैसे व्यतीत है करना
संकल्पों को एक बार दुहरा मन में लो
मानो मेरे बदले चिता पे आज तुम ही हो
के अंतिम शाम कोई इच्छा छुट न गई हो
(या पूरी कर ली हो, त्याग दी हो नहीं तो)
के मरो तब गर्व, खुशी व शांति से मरना
'अति अच्छा मरण जब लालसा जाये खो'
जब प्रातः ख़ाक चिता की राख उठानी हो
ध्यान कर के चार भागों में उसे बाँट लो
दो हिस्से गंगा भारत में विसर्जित करना
तीजा हिस्सा किसी पर्वत पे जा लहरा दो
जो चौथे हिस्से में पड़ी थोड़ी राख बची हो
एक काम करना उस पर एक पेड़ देना बो
'श्रद्धांजलि के बदले पानी दो', लिखवाना
'ये कवि अभी मरा नहीं है, मात्र रहा है सो'
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