Aag Lagane Ki Adat (Hindi) आग लगाने की आदत Poem by S.D. TIWARI

Aag Lagane Ki Adat (Hindi) आग लगाने की आदत

Rating: 5.0

आदमी में मजे से आग, लगा देता है आदमी।
आदमी में लगा के आग, मजा लेता है आदमी।

धधकने लग जाए कहीं पर उसकी लगायी हुई आग,
उसके आंच की ठंडक में, जुड़ा लेता है आदमी।

जो आग नहीं लगाता वह भी कहाँ से कम होता,
औरों की लगायी आग को, हवा देता है आदमी।

होती है कई लोगों को आग लगाने की आदत,
इस खेल में कभी खुद को, जला लेता है आदमी।

आग में तप कर के, बन जाये चाहे सोना कुंदन,
सोने को पूरा खाक में, मिला देता है आदमी।

आग लगाने की फितरत में जले चाहे घर किसी का,
सेंक उस पर अपनी रोटी, पका लेता है आदमी।

आग लगाने का खेल कुछ इस तरह सुहाता उसको,
लगाने बुझाने में उम्र, बिता लेता है आदमी ।

(C) एस० डी० तिवारी

Saturday, January 30, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,ghazal,metaphor,fire,satire,society
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 31 January 2016

मुहावरेदार भाषा में आपने मानव प्रकृति का अच्छा खाका खींचा है, तिवारी जी. कमाल की कविता. आग का खेल कुछ इस तरह जमता उसको लगाने बुझाने में एसडी, उम्र गुजार लेता है।

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