A-045. कुछ भी तो पुराना नहीं Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-045. कुछ भी तो पुराना नहीं

कुछ भी तो पुराना नहीं 16.9.16—5.46 AM

यह कैसी ज़िंदगी है
जिसमें कोई आन नहीं
जिसमें कोई शान नहीं
जिसमें कोई इन्सान नहीं
जिसमें कोई पहचान नहीं
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं

यह कैसी बन्दगी है
जहाँ कोई माँग नहीं
जहाँ कोई अरमान नहीं
जहाँ कोई दरमियाँ नहीं
जहाँ कोई शुकराना नहीं
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं

कौन सी कहानी सुनाऊँ
किसको फ़रियाद करूँ
किसको मैं याद करूँ
किसकी मैं बात करूँ
किसके संग रात रहूँ
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं

कैसे कोई गीत गाऊँ
कैसे मैं मुस्कराऊँ
कैसे तुमको हँसाऊँ
कैसे मैं गुस्सा दिखाऊँ
कैसे मैं चीखूँ भला
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं


कैसे मैं रौब जताऊँ
कौन सी उदासी
कौन सा सबब
रोना कहाँ से लाऊँ
क्यूँ कर मैं घबराऊँ
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं

किससे मैं बात करूँ
किससे मुलाकात करूँ
किसको मैंने खो दिया
किसी की पहचान क्यूँ
मन की उड़ान क्यूँ
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं

कौन से गिले शिकवे
कौन से कैसे रिश्ते
कौन सा वहम
कौन सा अहम
कुछ नहीं तो सब शान्त है
कुछ भी आना जाना नहीं
कुछ भी तो पुराना नहीं
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

Thursday, September 15, 2016
Topic(s) of this poem: motivational,relationships
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