A-040. किसकी शिकायत करूँ Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-040. किसकी शिकायत करूँ

किसकी शिकायत करूँ, जो मेरे अपने हैं
अगर वो अपने हैं, तो वही तो मेरे सपने हैं

औरों की शिकायत, करने से क्या फ़ायदा
जिनसे, लेने देना भी नहीं, फिर क्या क़ायदा

शिकायत तो, उनकी की जाती है
जो अपने होते हैं, और सपने पिरोते हैं

ज़िन्दगी के सारे, सुख दुख भी सहते हैं
सब कुछ सहते हुए, हमारे साथ रहते हैं

एक ही, खिलौने के लिए, दोनों रोये थे
माँ के आँचल में भी, साथ साथ सोये थे

नग्न हो, पोखर में, साथ साथ नहाये थे
लड़ाई झगड़े हमने, वहीँ पे निपटाए थे

है कोई माई का लाल, गलती गिना सके
किसकी हिम्मत है जो, हाँथ भी लगा सके

वही भाई, जिसको ख़ूब खेलाया करते थे
अपने ही खिलौनों से बहलाया करते थे

आज क्या हो गया, वो रिश्ता ही खो गया
काश लड़ पाते, पर वह संजोग ही सो गया

ज़ुबान चलती नहीं, लगता साँप सूँघ गया
मेरा प्यारा सा भाई, न जाने कहाँ छूट गया

इससे तो वही अच्छा था, लड़ते थे झगड़ते थे
प्यार भी करते थे 'पाली', साथ साथ रहते थे

प्यार भी करते थे 'पाली', साथ साथ रहते थे
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Poet: Amrit Pal Singh Gogia

A-040. किसकी शिकायत करूँ
Friday, February 10, 2017
Topic(s) of this poem: motivational,relationship
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