न कोई अपना है न कोई बेगाना
किसके लिए लिखना, किसके लिए गाना
हर कोई मोहरा है हर कोई दीवाना
रोना भी कला है हँसना भी बहाना
न कोई गीत है न कोई संगीत है
मतलब निकालना दुनिया की रीत है
दर्द की इन्तिहा का न करे ज़िक्र कोई
अपनी अपनी निभाये न करे फ़िक्र कोई
दिल के निशां भी किसी काम के नहीं
कोई भी पहुँचा नहीं किसी अंजाम पे कहीं
अश्क न बहा फ़रियाद न कर
जख़्म अपने यूँ ख़राब न कर
क्या दिया क्यों न दिया अब याद न कर
उनकी ख़ातिर दम तोड़ने की बात न कर
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem