कुछ तो बात करो 10.9.16—5.11 AM
कुछ तो बात करो
कुछ तो संवाद करो
कोई तो प्रश्न करो
कुछ तो विवाद करो
कुछ तो हुआ होगा
कुछ तो छुआ होगा
कुछ तो रहा होगा
कुछ तो सहा होगा
कुछ तो जाता होगा
कुछ तो आता होगा
कुछ तो होता होगा
कुछ तो खोता होगा
अलग अलग रंगों के
कुछ तो विचार होंगे
कुछ अपने भी होंगे
कुछ लिए उधार होंगे
जब तक मैं सही हूँ
दूजा गल्त होगा
आँखें भी नम होंगी
रिश्ता भी कम होगा
मोती भी टपकेंगे
दर्शन को तरसेंगे
नयन तरस जायेंगे
हम फिर पछतायेंगे
सब नजर का खेल है
न धक्का है न पेल है
अपनी नजर हटते ही
दूसरों की दिखने लगे
दूसरों की हर बात भी
हमारे पल्ले पड़ने लगे
दूसरों की हर बात भी
हमारे पल्ले पड़ने लगे
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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