क्यों इतनी बेचैन हो 27-6-15 6: 43AM
कभी बैठती हो
कभी भाग जाती हो
कभी दूर जाती हो
फिर करीब आती हो
कभी उदास होती हो
कभी मुस्कराती हो
कभी आँखें नम होती हैं
कभी फूलों से खिल जाती हो
कभी चुप हो जाती हो
फिर खुद ही बताती हो
कभी रूठ जाती हो
कभी खुद ही मनाती हो
कभी बोलती हो
कभी खुद ही शरमाती हो
एक पल शांत होती हो
दूसरे पल घबराती हो
कभी गले लगती हो
कभी खुद को छिपाती हो
समझ नहीं आया कि
आखिर क्या जताती हो
जो इतना घबराती हो
खुद को सताती हो
बस भी करो अब
जब पाली तेरे साथ है
क्यों इतनी बेचैन हो
जब हाँथों में हाँथ है
क्यों इतनी बेचैन हो
जब हाँथों में हाँथ है
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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