A-021. कभी कभी आया करो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-021. कभी कभी आया करो

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ऐसे ही कभी कभी आया करो 30.7.16—3.38AM

ऐसे ही कभी कभी आया करो
बाँहों में मेरी समा जाया करो
हर वो बात मुझसे जो करनी है
एक एक धीरे धीरे बताया करो

ऐसे ही कभी कभी आया करो
घण्टों बैठ कर तुम जाया करो
परिपक्वता तुममें झलकती है
पर कभी कभी मुस्कराया करो

बुलाना तो बस एक बहाना था
देखना तो तेरा यूँ मुस्कराना था
आने से चमन में जो गुल खिले
उनका एक गुलदस्ता बनाना था

मुझे अफसाना आज भी याद है
बिछुड़ना भी कितना अवसाद है
घंटों बैठे हम कितना विचरते थे
हर बात पे मंथन किया करते थे

समा जाने कैसे बीत जाता था
देखकर मंद मंद मुस्कराता था
तेरा साथ भी तो न्यारा होता था
हर लम्हा भी तो प्यारा होता था

तेरे आलिंगन में जो बैठा करते थे
लम्बी लम्बी बातें किया करते थे
सात जन्म के फेरे भी ले डाले थे
वायदे भी तो कितने दे डाले थे

जब भी कभी तुम्हारी याद आएगी
पता है मुझे बेशक बहुत सतायेगी
पर यह बात किसी को नहीं बताएँगे
तुमसे पहले मुस्कराएँगे जीत जायेंगे

मुझे पता है हम कभी एक न हो पाएँगे
फिर भी हम तुमको कभी भूल न पाएँगे
तेरी यादों के संग जी लेंगे ए मेरे सनम
पर कभी तुम्हारे ऊपर आँच नहीं लाएँगे

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-021. कभी कभी आया करो
Saturday, July 30, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship,romance
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 30 July 2016

जीवन यात्रा के चंद सुनहरी पन्नो की इबारत पढ़ना एक सुखद अनुभव से गुज़रने के समान है. इंसान की सारी इच्छायें पूरी नहीं हो पातीं लेकिन इससे उनका महत्व कण नहीं हो जाता. सुंदर यादें हमारी धरोहर हैं. शुक्रिया. सात जन्म के फेरे भी ले डाले थे (पर) मुझे पता है हम कभी एक न हो पाएँगे

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