कैसी है तूँ 19.8.16—7.51 AM
तलब सी रहती है जाने बिना
तेरे चेहरे पे नज़र थी
एक ही सवाल था
एक ही खबर थी
कैसी है तूँ
मिलना तो एक बहाना था
मकसद तो करीब आना था
करीब आकर सच को जान लेना
औरों की बात मान लेना
कैसी है तूँ
तेरी बातों में उलझा
बहुत दूर निकल आया था
सिर्फ एक बात पे नज़र थी
और मैं ढूंढता रहा
कैसी है तूँ
तेरा मुस्कराना हँसते जाना
अपने दिल की बातें
एक एक कर के बताना
और मैं ढूंढता रहा
कैसी है तूँ
तुमसे जो भी बात हुई
आँसूओं की बरसात हुई
दिल खोल के सुना
जानने को आतुर था
कैसी है तूँ
तेरे चाहने वालों से
मिलना भी होता था
हर बात में तुमको ढूँढा
हर बात में तुमको जोता था
कैसी है तूँ
ख्यालों में जब भी खोता था
सपनों में तुमको पिरोता था
तेरे बारे ही सबकुछ था
एक ही चिंता ढोता था
कैसी है तूँ
हवा के रुख का भी
इंतज़ार बना रहता था
कुछ तो खबर लगे
संशय सा बना रहता था
कैसी है तूँ ……………कैसी है तूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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