A-017. हर पल Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-017. हर पल

हर पल को यादगार बनाने के 6.8.16—5.54AM

मैं इतनी दूर निकल जाउँगा
तेरे सपनों में भी नहीं आऊँगा
यादों की वजह कौन पूछेगा
जब मैं ही नज़र नहीं आऊँगा

किसको ढूँढोगी अकेलेपन में
विरह का गीत जब मैं गाऊँगा
तेरी समझ कुछ आये न आये
पर दुनिया को यह मैं बताऊँगा

तुमसे कितना प्यार किया था
तुमने भी तो इकरार किया था
बहुत सारे वायदे भी किये था
बहुत सारा इज़हार किया था

नयी जिंदगी बिताने के लिए
मिल कर गीत गाने के लिए
कभी मिलकर हँसने के लिए
और कभी मुस्कराने के लिए

कभी कुछ समझने के लिए
कभी कुछ समझाने के लिए
कभी कुछ न छुपाने के लिए
दिल की बात बताने के लिए

सावन के पड़े जब झूले हों
अपनी जिद मनाने के लिए
बारिश की रिमझिम में गीले हो
एक दूसरे को बहकाने के लिए

गगन तले हो गुनगुनाने के लिए
चाँदनी संग मौज मनाने के लिए
तारों की छाँव मौसम सुहाना हो
मेरे आगोश में आ जाने के लिए

मैंने खुद को स्वयं देख पाया हूँ
अब मैं वाकई बहुत पछताया हूँ
सभी शिकायतें मैं छोड़ रहा हूँ
प्यारा रिश्ता फिर जोड़ रहा हूँ

वायदे किये थे साथ निभाने के
जिंदगी को भी रंगीन बनाने के
हाँथ में हाँथ लिए मुस्कराने के
हर पल को यादगार बनाने के

हर पल को यादगार बनाने के

A-017. हर पल
Friday, August 5, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship,relationships
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