A-016. खुश रहो बेशक दूर रहो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-016. खुश रहो बेशक दूर रहो

खुश रहो बेशक दूर रहो 17.9.16—10.57 PM

खुश रहो बेशक दूर रहो
तुम तो केवल मुस्कराया करो

हर ख़ुशी तुमको मुबारक हो
दुःख दर्द मुझको सुनाया करो

जो बात जँचे वो तुम्हारी
न जँचे वो दे जाया करो

वो परेशानियाँ सारी मुझे दे दो
उलझन में करीब आया करो

जज्ब कर लेते हैं हर दर्द को
सारे दर्द मुझे दे जाया करो

ख़ुशी के गीत तो सभी गाते हैं
तुम गम के सरगम गाया करो

यूँ तो दूरियाँ भी कितनी करीब हैं
कभी दूरियाँ भी छोड़ आया करो

खुश रहो बेशक दूर रहो
तुम तो केवल मुस्कराया करो

Poet: Amrit Pal Singh 'Gogia'

A-016. खुश रहो बेशक दूर रहो
Thursday, September 29, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship,motivational,relationships
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