A-008. नज़रें चुराते चुराते Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-008. नज़रें चुराते चुराते

नज़रें चुराते चुराते 20.7.16—4.58AM

नज़रें चुराते चुराते दिल चुरा बैठे
बातों ही बातों में अपना बना बैठे
सुर से सुर भी मिलते गए हमारे
जब हमें देख वो भी मुस्करा बैठे

मुझे देखकर वो भी होश गँवा बैठे
खिसक खिसक कर पास आ बैठे
हाँथों में हाँथ ख़ामोशी का आलम
नज़रें मिली तो वो भी मुस्करा बैठे

उनको देखा जब यूँ मुस्कराते हुए
हम भी पास आये होश गँवाते हुए
उनको देख उनकी तलब हो गयी
बात बताई उनको गले लगाते हुए

वक़्त ठहर गया हम कहीं खो गए
उनकी बाँहों में ही हम कहीं सो गए
इंतज़ार हो जैसे किसी आलम का
मैं उनका हुआ और वो मेरे हो गए

वक़्त बेवक़्त वो और भी अपने हुए
मौज मस्ती के संग सारे सपने छूए
बेखबर हो दरार भी कहीं आने लगी
जिंदगी भी बदस्तूर हो दूर जाने लगी

हुआ क्या जो मुझसे खफा हो गए
शिद्दत भी की फिर भी दफा हो गए
आँखें खुली हुईं आँखों में नीर था
चेहरा उनका भी थोड़ा ग़मगीन था

सुन ही न पाए उनके अफ़साने को
कहना चाहते थे वो कुछ सुनाने को
सुन लेते हम वो भी खाली हो जाते
खाली हो जाते तो भला कहाँ जाते

सुनने सुनाने का चित्र भी विचित्र है
रिश्ते संभालने का सुनना ही इत्र है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-008. नज़रें चुराते चुराते
Wednesday, July 20, 2016
Topic(s) of this poem: educational,love and friendship,motivational
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