A-006. वो कौन थी Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-006. वो कौन थी

वो कौन थी 29.2.16—11.36 AM

वो कौन थी....
मदिरा थी या प्याला थी
मंदिर थी या शिवाला थी
मौसम की बरसात थी वो
या केवल मन की बात थी

वो कौन थी....
सावन की सोमवारी में
तेरी मेरी और हमारी में
बाँहों में झूला करती थी
मस्ती वो पूरी करती थी

वो कौन थी....
मोहब्बत थी या हीर थी
लकीर थी या तकदीर थी
समर्पण थी या अधीर थी
प्यारी थी या शमशीर थी

वो कौन थी....
सपनों में आया करती थी
बाँहों में समाया करती थी
घण्टों भूल जाया करती थी
रह रह मुस्कराया करती थी

वो कौन थी....
मुझ को सताया करती थी
खुद तो मुस्कराया करती थी
हर बात पे हँसाया करती थी
फिर खुद शरमाया करती थी

वो कौन थी....
मुझको भगाया करती थी
खुद ही इठलाया करती थी
खुद को सजाया करती थी
मुझ को दिखाया करती थी

वो कौन थी....
सपनों में मिली हैरान थी वो
बन गयी मेरी पहचान थी वो
मेरी खुद की कशीदाकारी थी
जिंदगी बनी हम से हमारी थी

जिंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है
आप ने सृजित करी वैसी ही है
............सृजित करी वैसी ही है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-006. वो कौन थी
Friday, June 24, 2016
Topic(s) of this poem: love and dreams
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