A-005. भींगे चोली उड़े चुनरिया Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-005. भींगे चोली उड़े चुनरिया

भींगे चोली उड़े चुनरिया 21.7.16—7.00AM

भींगे चोली उड़े चुनरिया
सावन की ऋतू आयी रे
आयी रे आयी रे आयी रे
सब के सकल हरजाई रे

कम बरसे या जम बरसे
मन तरसे करे अगुआई रे
अंग अंग सिहरित होवे है
पवन मिल करे चतुराई रे

पवन मिल अठखेलियाँ करे
हरियाली बन के इठलाई रे
सावन के झूलों पे नृत्य करे
हाँथियों ने भी मौज उड़ाई रे

कहीं कोई गीला कहीं सूखा
कहीं मेवा बँट रही मिठाई रे
कहीं सावन का मेला न छूटे
सखियाँ मिल दे रही दुहाई रे

श्रावण मेले की बात निराली
हर नार छमक बन आयी रे
कोई सिन्दूरी कोई बने गरूरी
कहीं पायल बजे शहनाई रे

हरी हरियाली हरी हरी चूड़ियाँ
हर पग पायल दियो सजाई रे
श्रावण ऋतू सबको भावे भईया
सोमवारी की सबको बधाई रे

खनके चूड़ियां खनके कंगन
जान सूली पर चढ़ आयी रे
बनके मजनूँ बैठा टीले कोई
कोई आशिक कोई शुदाई रे

भींगे चोली उड़े चुनरिया
सावन की ऋतू आयी रे ……
सावन की ऋतू आयी रे ……

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-005. भींगे चोली उड़े चुनरिया
Thursday, July 21, 2016
Topic(s) of this poem: love and life,romantic
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