A-001. एक बार तो सपने Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-001. एक बार तो सपने

एक बार तो सपने हम ने भी संजोए थे

एक बार तो सपने हम ने भी संजोए थे। सः 2013 में जब मेरी पोती सुमित गोगिया ने अपनी पहली कविता संग्रह 'ख्वाहिश' का विमोचन किया था। तब मैंने बहुत लम्बे अरसे के बाद कविता की चन्द लाइनें लिखी जो कि 42 सालों के बाद एक नयी शुरुआत थी। जिसके फलस्वरूप मेरी पहली कविता संग्रह आज आपके सामने है।

फूलों की खूबसूरती और खुशबू
दोनों का संगम है गुलाब
इस प्यारी बच्ची का स्वप्न
मेहनत और लगन का संगम है ख्वाहिश

एक बार तो सपने हम ने भी संजोए थे
बहुत सारे मोती तो हमने भी पिरोये थे

रात के अँधेरे में सपनों के फेरे में
कहीं दूर एक लौ सी नज़र आती थी
कभी बुझती कभी जलती थी
कभी टिमटिमाती थी

यह कैसा सफर था कभी जाना ही नहीं
किसी ने हमको पहचाना ही नहीं
आज मुझे पहचान दी है मेरी नन्ही सी बच्ची ने
यह मेरा सपना हैं या देख रहा हूँ सच्ची में

A-001. एक बार तो सपने
Friday, February 10, 2017
Topic(s) of this poem: dreaming,inspirational
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
एक बार तो सपने हम ने भी संजोए थे। सः 2013 में जब मेरी पोती सुमित गोगिया ने अपनी पहली कविता संग्रह 'ख्वाहिश' का विमोचन किया था। तब मैंने बहुत लम्बे अरसे के बाद कविता की चन्द लाइनें लिखी जो कि 42 सालों के बाद एक नयी शुरुआत थी। जिसके फलस्वरूप मेरी पहली कविता संग्रह आज आपके सामने है।
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