90's की यादें Poem by Ashish Singh

90's की यादें

90, s की बात हो ओर उस वक्त के गाने ना याद आए
ये कुछ ऐसा है जैसै बादल गरजे और बरसात ना आए

हसीन यादें 90's की हाय वो कैसेट वाला जमाना
रील अटक जाती थी बीच मे फिर पेंसिल से घुमाना

काजोल, शाहरुख ने भी तब खुब दिलों को धड़काया था
होते नही थे मल्टीप्लेक्स, फोन, स्मार्ट TV उस वक्त
सिनेमा घर की लम्बी लाईन मे आधा दिन जाता था

दादा दादी के सुनाए वो किस्से कहानियाँ
जिनमे होती थी जिन्दगी की सच्ची निशानिया

बातो-बातो मे बहोत कुछ सिखा जाती थी दादी नानी
आज मैं जो कुछ भी हूं बस उनकी ही है मेहरबानी

फोन उतने स्मार्ट नही थे, लैंडलाइन का जमाना था
आज जितना आसान नही था कुछ भी तब
बड़ा मुश्किल उस वक्त इश्क भी फरमाना था

टीवी नही उस वक्त इंसान स्मार्ट होते थे
मोबाइल तो था नही लोग सामने से गले मिलते थे

DD1, DD2 इन दो टीवी के चैनल ने बहोत पकाया था
कलर टीवी ओर केबल कनेक्शन 90, s मे ही आया था

दिन भर मिलती थी शरीर को ठणडक, गर्मी, हवा, पानी
ना कम उम्र का चश्मा था ना थकावट ना कोई परेशानी

मासुम सी थी शरारतें, थी अल्हड़ सी जवानी
बड़ो का मान भी उतना था, थी जितनी मन मानी

यारों की टोली सजती थी होली फिर होली लगती थी
मिल कर मनाते थे हर खुशी हर त्योहार

तब सेल्फी वाली झुटी हंसी नही
सच्ची मुस्काने चेहरे पर सजती थी

जो भी हो यारों आज भी जब याद वो वक्त आता है
फिर से जी जाए वो पल दिल एक बार कह जाता है

© आशीष सिंह

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