कितनी बार बुलाया तुमने
मिलने को उस पार
आता कैसे पास न मेरे
नौका, ना पतवार
निमंत्रण आया था।
तट से ही था हुआ लौटना
जाने कितनी बार
चढ़ा हुआ था जल नादिया का
कोई न पारावार
निमंत्रण आया था।
समझ सका ना बात तुम्हारी
दो रोटी का भार
कतरा कतरा जीवन जी कर
चला मेरा संसार
निमंत्रण आया था।
जलती रातें, जमते दिन औ'
रोदन, हाहाकार
आभारी हूँ मुझे दिया जो
करुणा का उपहार
निमंत्रण आया था।
तेरे कदमों में अर्पण है
मेरे सब अधिकार
भर दे पीड़ा से मेरा मन
चलूँ लुटाता प्यार
निमंत्रण आया था।
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बहुत दिनों बाद आज ऐसा लगा कि इस फोरम पर भी श्रेष्ठ कवितायें पढने को मिल सकती हैं. आपके इस भावपूर्ण गीत ने बहुत प्रभावित किया. बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद, मित्र ललित जी.