निमंत्रण आया था Poem by Lalit Kaira

निमंत्रण आया था

Rating: 5.0

कितनी बार बुलाया तुमने
मिलने को उस पार
आता कैसे पास न मेरे
नौका, ना पतवार
निमंत्रण आया था।
तट से ही था हुआ लौटना
जाने कितनी बार
चढ़ा हुआ था जल नादिया का
कोई न पारावार
निमंत्रण आया था।
समझ सका ना बात तुम्हारी
दो रोटी का भार
कतरा कतरा जीवन जी कर
चला मेरा संसार
निमंत्रण आया था।
जलती रातें, जमते दिन औ'
रोदन, हाहाकार
आभारी हूँ मुझे दिया जो
करुणा का उपहार
निमंत्रण आया था।
तेरे कदमों में अर्पण है
मेरे सब अधिकार
भर दे पीड़ा से मेरा मन
चलूँ लुटाता प्यार
निमंत्रण आया था।

Saturday, November 4, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 04 November 2017

बहुत दिनों बाद आज ऐसा लगा कि इस फोरम पर भी श्रेष्ठ कवितायें पढने को मिल सकती हैं. आपके इस भावपूर्ण गीत ने बहुत प्रभावित किया. बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद, मित्र ललित जी.

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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