दिल है दिलेरी Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

दिल है दिलेरी

दिल है दिलेरी, अंजाम आखरी,
कुछ भी हो सकता है.
कहना पडेगा छल है मुहब्बत,
मिठी छुरी.

किया प्यार हमने अपनी तरह से,
फलक छू रहा हो जैसे अपनी धरा से.
चीज ये बडी, जंजीर की कड़ी.
कहना पडेगा छल है मुहब्बत,
मिठी छुरी.

अंदाज अपना सबसे निराला
मिलाकर गया जुदा करनेवाला
किल ये गड़ी, होश पे खड़ी
कहना पडेगा छल है मुहब्बत
मिठी छुरी

माकूल हमने नज़ारा किया है
अच्छा हुँआ जो किनारा किया है
वक्त की घड़ी, सबसे बड़ी
कहना पडेगा छल है मुहब्बत
मिठी छुरी

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: love
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