आजा तुझे दिल में उतारू Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

आजा तुझे दिल में उतारू

आ जा तुझे दिल में उतारू, आ जा तेरे संग-संग सवारू
तु ही रे मेरी खुशी, तु ही रे है जिंदगी, तुझ में है जां बसी..

कली, बेकली है, तेरे लिए; भली एकली है, तेरे लिए
अतर हो गयी है, सारी फिजा; खुली ये गली है, तेरे लिए
तु ही रे मेरी ख़ुशी, तु ही रे है जिंदगी, तुझ में है जा बसी..

तु पराग माड़ी में बसता; भँवरे को मालूम है रस्ता
गुंजन बनके बालो में छिड़क दे; रहाई का है तुझे वास्ता
तु ही रे मेरी ख़ुशी, तु ही रे है जिंदगी, तुझ में है जा बसी..

तु कोंपलों में है, तु डांठ में, तु शाख़ में है,
तु पात में
मैं चलते चलते कभी रूक गया, साया मिला मुझको सौगात में
तु ही रे मेरी ख़ुशी, तु ही रे है जिंदगी, तुझ में है जा बसी..

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: love
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