खता करके, तुम्हारे द्वार पर, हर बार जाता हूँ Poem by Abhishek Omprakash Mishra

खता करके, तुम्हारे द्वार पर, हर बार जाता हूँ

खता करके, तुम्हारे द्वार पर, हर बार जाता हूँ
अजब है रहमतें मुझ पे, जो तेरा प्यार पाता हूँ
हुनर कैसा, मेरे मौला बता, ये मुझको बख्सा है
मैं जिसको जीतता आया, उसी से हार जाता हूँ

Thursday, December 25, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
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