चल चला चल लगा जोर Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

चल चला चल लगा जोर

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दूर हैं गांव तेरा मेरा,
रे यार मेरे.
मनवा नाचे मोर,
दूरी सही ना जाए और,
चल चला चल लगा जोर.

बचपन का खेला; जवानी का झुला,
भुलाया ना भुला; वो यादो का मेला.
दुनिया का चक्कर हैं; दो दिन का रेला,
जहाँ से शुरु हो; वहीं खत्म झमेला.

मनवा नाचे मोर,
दूरी सही ना जाए और,
चल चला चल लगा जोर.

Friday, September 12, 2014
Topic(s) of this poem: life
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