जीवन के रस्ते बारात मेरी Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

जीवन के रस्ते बारात मेरी

Rating: 5.0

जीवन के रस्ते; बारात मेरी,
मंज़ील को मैने; दूल्हन पुकारा.
सजके वो डोली में; बैठी ही होगी,
राहो में मेरी; सजदे में मेरी.

कानों में गुंजन; शहनाईयों की,
रस्मों ने मुझको; दूल्हा पुकारा.
मेहमान बनके; आऊँ मैं कैसे,
राहों में मंज़ील; सजदे में तेरी.

होशो हवासो में; देखी वो सुरत,
दर्पण ने जिसको; नर्गिस पुकारा.
संगे-मरमर सी काया; वो खुशबू बिखेरे,
राहों में मेरी; सजदे में मेरी,

मंज़ील वो दुल्हन; नजारों सी होगी,
सितारों ने बक्शी; वो पूनप सी होगी.
कदमों से मेरे वो; सोहबत में चलकर,
वो पहचान मेरी; जमाने में होगी.

Monday, September 8, 2014
Topic(s) of this poem: life
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