तु मेरी जिंदगी का; अजीब इत्तेफाक हैं Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

तु मेरी जिंदगी का; अजीब इत्तेफाक हैं

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तु मेरी जिंदगी का; अजीब इत्तेफाक हैं,
तेरे बिना जिंदगी; यारा जैसे खाक हैं.

वक्त के किसी ताल पर; मैं नहीं ठहरा कभी,
तब भी मेरे गाल पर; अश्क तेरा पाक हैं.

जिस्म के जंजाल से; अच्छा हुआ मैं दूर हुँ,
जब कभी तन्हा हुआ; देखती तेरी आँख हैं.

प्यार में व्यापार में; मैं नहीं किसी काम का,
पर तेरे दरबार में; अब भी मेरी साख हैं.

दे दिया तेरा तुझे; दर्द भी चुकता किया,
फिर भी मेरे पास में; बची क्युं ये राख हैं.

Friday, September 5, 2014
Topic(s) of this poem: love
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