आ फिर ठहर जायें
उस सुनहरी शाम पर
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एक दार्शनिक गंध को ले कर चलती थमती बेहतरीन काव्य अभिव्यक्ति. जब कोई चाय की चुस्कियों के बीच किसी के सामने अपने शिकवे शिकायत के लिए भी जगह निकाल लेता है तो समझ लें कि जिंदगी में नयी शुरुआत के लिए भी कदम बढ़ा सकता है. Thank you so much.
बहुत ही उम्दा और बहुत बेहतरीन कविता. आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर, " आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर, जिंदगी को भी अपने साथ बिठाए, कुछ देर सिर्फ कुछ देर।। उन लम्हों को याद कर जाये, जो तेरे मेरे दरम्यान थे, कुछ देर, सिर्फ कुछ देर।। जो तुझे मुझे सकूं दे जाये, कुछ देर सिर्फ कुछ देर ।। जानता हूँ, अब वक़्त भी नहीं देगा साथ, फिर भी आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर ।। एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से (शरद भाटिया) आभार
आपकी कविताओं में ज़िन्दगी की सच्चाई छुपी होती है, आपकी बात दिल से दिल तक पहुँचती है, ये कलम का जादू नहीं तो और की है. ढेरों दाद, बहुत बधाईयां 100++