Friday, May 11, 2012

कुछ ज़िन्दगी सा Comments

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ज़िन्दगी से झूझता हुआ मैं हारा सा थका सा.
कुछ दूर चला फिर भूल चला, भटका सा
ना नींद, ना सपने, ना ही मंजिल और ना ही अपने
बढ़ता जा रहा बिन बादल बिन छाँव, कुछ बुझा कुछ जला सा.
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Vishnu Pandit
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Vishnu Pandit

Vishnu Pandit

Nanital, India
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