जिंदगी एक शतरंज Poem by Sukhbir Singh Alagh

जिंदगी एक शतरंज

ये जिंदगी की शतरंज है
खेल बिगड़ जाता है पल में।
झूठी महोब्बत का मुखौटा पहने
जग छल जाता है पल में।
रोज रिश्ते बनते बिगड़ते
हर कोई रूठ जाता है पल में।
आज को जीना भूल जाते है लोग
चिंता लगी रहती है आने वाले कल में।

Monday, March 11, 2019
Topic(s) of this poem: life
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