क्या मैं हूँ क्या तुम हो! Poem by Rinku Tiwari

क्या मैं हूँ क्या तुम हो!

मुझ में और तुझ में बस फर्क है इतना,
मैं तुझ में समाया तू मुझ में समाया ।
मेरा तन तेरा है तेरा तन मेरा
तेरा मन मेरा है मेरा मन तेरा
इस अंतर का पता लगाना ही कर्म है मेरा
तुमने मुझे समझाया मैंने तुझे
पर समझाने का फल क्या हुआ
तुमने कहा प्रेम अपना है
मैंने कहा प्रेम सपना है।
तुम कहा मुझसे प्रेम करो
मैंने कहा सबसे प्रेम करो।
इस अंतर का विचार करना ही कर्म है तुम्हारा ।
तुझ में क्या है जो मुझ में नहीं,
मुझ में क्या है जो तुझ में नहीं ।
जहां मैं देखूं वहां तू ही तू,
जहां ना देखूं वहां भी तू ही तू ।
रात के अंधेरों में तेरा ही उजाला,
तपती धूप में तेरा ही छाया
जैसे प्यासे को पानी की जरूरत
वैसे इस मन को शांति की जरूरत
आंखें खोज रही है उसे
जिसके लिए सांसे चल रही
जाऊं मैं कहां खोजू में कहां
पैर नहीं चल सकते तो खोज ही कैसे सकता
आंखें देख नहीं सकते तो पहचान कैसे सकता।
तुम बैठी हो जहां वहां मैं जाऊं कैसे।

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Who am I and who are You both are different in thinking. if both are love then there is no different.
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