अपने गाँव की माटी में Poem by Upenddra Singgh

अपने गाँव की माटी में

हमने हिन्दुस्तान को देखा अपने गाँव की माटी में।
अहले हिन्द महान को देखा अपने गाँव की माटी में।


मेहनत का फल जिसमें फलता खेती अन्न उगलती है।
देवों के वरदान को देखा अपने गाँव की माटी में।


बुद्धि और श्रम की महिमा रामबाण है वरदानी है।
इस विशिष्ट विज्ञान को देखा अपने गाँव की माटी में।


बचपन में छिप पैसे बोये धरती में जो दबे रह गए।
अपने इस अज्ञान को देखा अपने गाँव की माटी में।


गंगा-ज़मुनी संस्कृति जिसके अणु-अणु में झंकृत होती है।
हमने सकल जहान को देखा अपने गाँव की माटी में।


सरयू की निर्मल धारा उनके चरणों को नित धोती।
ग्राम्य देव के मान को देखा अपने गाँव की माटी में।


कोटमरी माई डीह बाबा के लगते नित जयकारे।
देवों के सम्मान को देखा अपने गाँव की माटी में।


बाबा जोगावीर प्रिय मेरे लीन तपस्या में हैं बैठे।
ऋषियों के उस ध्यान को देखा अपने गाँव की माटी में।



जहाँ देश हित बच्चा-बच्चा मरने को तत्पर रहता है
त्याग और बलिदान को देखा अपने गाँव की माटी में।


बाबू आदित्या सिंह नाहर सत्य अहिंसा के परवाने।
मूर्तिमान ईमान को देखा अपने गाँव की माटी में।


बाबा परमहंस की स्मृति मानवता की अलख जगाती।
जीवन के उत्थान को देखा अपने गाँव की माटी में।


क्या देखा तुमने क्या पाया 'सुमन' नहीं मुझको मालूम।
मैंने तो भगवान को देखा अपने गाँव की माटी में।।

Sunday, September 30, 2018
Topic(s) of this poem: village
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Azamgarh
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