आज कल चाँद 🌙 मेरे छत पर आ जाया करता है....
कुछ देर बैठता है मेरे साथ और कुछ ताने सुनाया करता है, बड़ी सिकायत है उसे मुझसे मेरी गलतियाँ मुझे गिनाया करता है।
आज कल चाँद 🌛 मेरे छत पर आ जाया करता है..।
कभी रुठता है मुझसे और कभी खुद ही मान जाया करता है
कभी नगमें तो कभी अपने किस्से सुनाया करता है।
आज कल चाँद🌜 मेरे छत पर आ जाया करता है...
कभी पूरा 🌝तो कभी टुकड़ों 🌙 में जगमगाया करता है
अपनी रौशनी से मुझे भी रौशन कर जाया करता है
न देखूँ उसे तो गुस्से से बादलों ☁️में छुप जाया करता है
आज कल चाँद 🌙मेरे छत पर आ जाया करता है......
💕🌙🌛🌜🌝💕
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem